जनपद प्रयागराज
जनपद प्रयागराज को प्रयाग के रूप में ऐतिहासिक मान्यता प्राप्त है। प्रजापति ब्रह्मा जी ने जिस धरती पर कई हजार वर्षों तक घोर तपस्या की थी। वह प्रयाग के नाम से विख्यात है, जिसका अर्थ है-उत्तम और कठोरतम तपस्या की भूमि। यह ऋषियों की तपोस्थली रही है। इस जनपद को भाष्कर क्षेत्र भी कहा जाता है। सोम, वरूण एवं प्रजापति की तपोभूमि रही है, जहाँ श्वेत गंगा तथा श्यामली यमुना के साथ अदृश्य सरस्वती का पवित्र संगम होता है। वहीं श्याम श्वेत जल धाराओं के मिलन स्तर पर बसा प्रयाग नगर आदि काल से हिन्दुओं का प्रथम तीर्थ स्थल रहा है। रामायण के अनुसार मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम वन जाते समय गंगा तट पर बसे निषादराज के राजधानी श्रृंगवेरपुर में रूके थे और गंगा पार करके उन्होने प्रयाग में महर्षि भारद्वाज के आश्रम में विश्राम किया था। महाकवि तुलसी दास ने अपने लोकप्रिय ग्रन्थ रामचरितमानस में प्रयाग की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा है –
कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ।।
जनपद-प्रयागराज के भौगोलिक विस्तार एवं प्राकृतिक विषमताओं को दृष्टिगत रखते हुए सम्पूर्ण क्षेत्र को जनमानस के सामाजिक, आर्थिक एवं नैतिक उत्थान को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से 4 अप्रैल, 1997 को राज्य सरकार द्वारा जनपद कौशाम्बी का सृजन कर जनपद-प्रयागराज का पुनर्गठन किया गया। पुनर्गठित जनपद में 8 तहसीलें कोरांव, सदर, फूलपुर, हंडिया, करछना, बारा, मेजा, सोरांव तथा 23 विकास खण्ड हैं। जबकि नवसृजित जनपद कौशाम्बी में 3 तहसीलें सिराथू, मंझनपुर एवं चायल तथा 8 विकास खण्ड हैं।