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    जनपद प्रतापगढ़

    जनपद की स्थापना वर्ष 1858 में हुई। इसका मुख्यालय बेल्हा प्रतापगढ़ रखा गया है। गजेटियर के अनुसार स्थानीय राज प्रताप सिंह द्वारा अपने अभ्युदय काल (सन् 1628-1682 के मध्य) में रामपुर में निर्मित एक गढ़ किला के कारण इसका नाम प्रतापगढ़ पड़ा । सई नदी के किनारे स्थित प्राचीन बेल्हा भवानी मन्दिर के स्थान बेल्हा एवं प्रतापगढ़ को मिलाकर इसका नाम बेल्हा प्रतापगढ़ रखा गया जो सामान्यतः प्रतापगढ़ के नाम से जाना जाता है। पहले यह जनपद फैजाबाद मण्डल में सम्मिलित था। सन् 1988 में यह इलाहाबाद मण्डल का अंग बन गया । जनपद का विस्तार 25.34 व 26.11 डिग्री अक्षांश व 81.10 व 82. 27 डिग्री देशान्तर के मध्य है। इसके उत्तर में जनपद सुल्तानपुर, पूरब में जौनपुर, दक्षिण में प्रयागराज व कौशाम्बी एवं पश्चिम में रायबरेली जनपद की सीमायें मिलती हैं । पश्चिम से पूरब तक लगभग 115 किमी. तथा उत्तर से दक्षिण तक लगभग 40 किमी. तक फैले इस जनपद का भौगोलिक क्षेत्रफल 3717 वर्ग किमी. जो मण्डल के कुल क्षेत्रफल 15131 वर्ग किमी. का 24.56 प्रतिशत है। जनपद के दक्षिण एवं पश्चिम में लगभग 50 किमी. तक गंगा नदी बहती है जो जनपद फतेहपुर, कौशाम्बी एवं प्रयागराज से इसकी सीमा निर्धारित करती है। जनगणना सन् 2011 के अनुसार जनपद में कुल 2219 ग्राम है। जिनमें 2183 आबाद ग्राम है।

    जनपद समुद्र तल से 137 मी. ऊचांई पर स्थित है। उत्तर में गोमती नदी व दक्षिण में गंगा नदी पश्चिम से पूरब की ओर अनवरत सतत् प्रवाहशील मात्र सई नदी है। इसके अतिरिक्त चमरौरा, परैया, बकुलाही, सकरनी तथा लोनी नदियां है। जनपद में गर्मी का मौसम अधिक गर्म एवं जाड़े का मौसम अधिक ठंडा रहता है। जनपद में खनिज सम्पदा नहीं है। क्षारीय क्षेत्रों में कंकड़ उपलब्ध है जिसका प्रयोग सड़क निर्माण में किया जाता है। क्षारीय मिट्टी कपड़ा धोने के लिये प्रयोग में लायी जाती है। जनपद मुख्यालय प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 173 किमी. पूर्व में स्थित है। पश्चिम से पूर्व की ओर अनवरत प्रवाहशील सई नदी इस जनपद को दो भागों में विभक्त करती है। नदियों के बड़े बरसाती नालों एवं बैंती, विहार तथा रामपुर की झीलें तथा दाऊदपुर, रंगोली के ताल जनपद की मुख्य धरोहर है।



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