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    जनपद कौशाम्बी

    कौशाम्बी (उपनाम-कोसम) अब जनपद कौशाम्बी के नाम से जाना जाता है। इसके पूर्व यह जनपद प्रयागराज में सम्मिलित था। इसके दक्षिण में बांदा जनपद, उत्तर में प्रतापगढ़, पूर्व में प्रयागराज एवं पश्चिम दिशा में फतेहपुर जनपद अवस्थित है। कौशाम्बी प्रयागराज के दक्षिण पश्चिम में यमुना नदी के उत्तरी तट पर सड़क मार्ग से 60 कि.मी. दूर तहसील मंझनपुर के अन्तर्गत आता है। वर्तमान में इस जनपद का मुख्यालय मंझनपुर है। इसमें 8 विकास खण्ड एवं 3 तहसीलें है।

    प्राचीन वत्स देश की राजधानी कौशाम्बी रही है। सम्राट अशोक का प्रसिद्ध तीर्थ स्तम्भ यहीं से उठकर प्रयाग किले में ले जाया गया। सतपथ ब्राह्मण, गोपथ ब्राह्मण, तथा तैतरीय ब्राह्मण इस स्थान को एक बड़ा विद्यापीठ बताया गया है। मत्स्य एवं हरिवंश पुराण में भी कौशाम्बी का वर्णन मिलता है। कहा जाता है कि संस्कृत व्याकरण के प्रसिद्ध आचार्य कात्यायन ऋषि का जन्म यहीं हुआ था। प्राचीन काल में राजा कुटुम्ब द्वारा बसाये जाने से भी इस का नाम कौशाम्बी पड़ा। कुटुम्ब चन्द्रवंशी नरेशों पुरूरवा से दसवीं पीढ़ी में हुए थे। इसकी प्रसिद्धि नेमचन्द्र के समय में हुयी थी। हस्तिनापुर के गंगा की बाढ़ में बह जाने से इसी स्थान को नेमचन्द्र ने राजधानी बनाया था। प्राचीन भारतवर्ष के जनपदों (राज्यों) में गन्धर्व, कम्बोज, हिमादि, कैकय, सप्त, सिन्धव, ब्रह्मवैवर्त, कुरू, मत्स्य, चेदि, अवन्ति, वत्स, मगध, विदेह, कौशल, तथा काव्य काल के विदेह, काशी, अयोध्या, प्रयाग, वत्स, कान्यकुब्ज, पांचाल, हस्तिनापुर, मथुरा, शूरसेन, इन्दप्रस्थ , तक्षशिला, गांधार, राज्य थे। इसका प्राचीन नाम वत्स या वत्स पटन था । महाराजा रामचन्द्र जब अयोध्या से चलकर श्रृगवेरपुर के घाट को पारकर प्रयाग की ओर बढ़े तो वे वत्स देश पहुॅचे जिसकी राजधानी कौशाम्बी थी । कहते हैं कि पाण्डवों ने अज्ञातवास का 13वाँ वर्ष इस स्थान पर व्यतीत किया। गौतमबुद्ध ने अपने साधु जीवन का छटवाँ और नौवाँ वर्ष यहीं व्यतीत किया। संस्कृत साहित्य में बाणभट्ट की रचनावली नाटिका तथा कालिदास के मेघदूत और माघ के स्वप्नवासवदत्ता में राजा उदयन की चर्चा है। जिससे बुद्ध की मूर्ति कौशाम्बी में स्थापित है।

    प्राचीन तीर्थकर ऋषभदेव ने वत्स देश में गंगा यमुना संगम पर तप एवं ज्ञान प्राप्त किया था। इसी वत्स देश की राजधानी कौशाम्बी छठवें तीर्थकर मैदूभ प्रभु के गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान कल्याणपूरक हुए मगध सम्राट अशोक ने अपनी राजकीय देख-रेख के लिए इसे उप राजधानी बनाया था। कड़ा के किले से प्राप्त अभिलेखों से प्रकट होता है कि कड़ा कौशाम्बी, मण्डल के अन्तर्गत होना पाया जाता है। बौद्वकाल में कौशाम्बी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। चीन के दोनो प्रसिद्ध यात्री फाह्यान और व्हेनसाँग ने इसके बारे में विस्तार से वर्णन किया है। मौर्य, शुंग, कुषाण और गुप्त काल में ही यह नगरीय कला और वाणिज्य की केन्द्र थी। कौशाम्बी में जैन मन्दिर काफी संख्या में है। यहाँ के खण्डहर से प्राप्त हजारों प्राचीन मूर्तियाँ एवं सिक्के इलाहाबाद संग्रहालय में संग्रहित हैं। पभोषा, (प्रभाषगिरि) में दिगम्बर जैन मन्दिर तक धर्मशाला है तथा पास ही चम्पहा गाँव में भी एक जैन मन्दिर है। भरवारी से 27 किमी. दूर शहजादपुर में एक जैन मन्दिर है। अतीत मे यह समृद्विशाली जैन नगर था। यहाँ दो सौ जैन मन्दिर थे दारानगर तथा पाली में भी एक-एक मन्दिर है। कड़ा का भी ऐतिहासिक महत्व रहा है। यहाँ पर अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी उप राजधानी बनायी थी जबकि दिल्ली राजधानी थी वर्तमान में 2011 की स्थिति के अनुसार जनपद कौशाम्बी की कुल जनसंख्या 1599058 है। जनपद का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 1780 वर्ग किमी. है।



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