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    प्रस्तावना

    जब प्रयाग पर अंग्रेजों का कब्जा था, तब ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से मार्क्‌वेस वेलेस्ली भारत के गवर्नर-जनरल थे। अकबर के समय में इलाहाबाद में 10 सरकारें (जिले) और 177 परगना थे (राजस्व इकाई के रूप में, एक परगना में कई मौजे होते थे, जो सबसे छोटी राजस्व इकाइयाँ होती हैं, जिसमें एक या एक से अधिक गाँव और आस-पास के ग्रामीण इलाके शामिल होते हैं)। नवम्बर, 1801 में जब यह प्रांत अंग्रेजों को दिया गया था, तब इसमें केवल 5 सरकारें (इलाहाबाद, कड़ा, मानिकपुर, भटघोरा (बारा), कौड़ा।) थीं जिसमें 26 परगना थे। उस समय फतेहपुर-हंसवा भी इलाहाबाद का हिस्सा था, लेकिन परगना केवई अलग था।

    सन्‌ 1896 में अवध के परगना केवई को प्रयाग जिले में शामिल किया गया था और 1825 में सरकार ने कुछ पुराने परगना जैसे कड़ा और कोड़ा को लेकर एक अलग जिला ‘फतेहपुर’ बनाया था।

    राजस्व और सामान्य प्रशासन के काम को सुविधाजनक बनाने हेतु वर्ष 1840 में पहली नियमित बंदोबस्त की शुरुआत के समय इलाहाबाद जिले को 14 परगनो से मिलाकर 9 तहसीलों में विभाजित किया गया था लेकिन बारा की तहसील जिसमें इसी नाम का एक परगना भी शामिल था, को अरैल के परगना के साथ तहसील करछना में मिला दिया गया था। शेष तहसीलों के स्थान में मात्र यह परिवर्तन हुआ कि लगभग सन्‌ 1843 में तहसील मंझनपुर ‘पश्चिम शरीरा’ में तथा सन्‌ 1865 तक तहसील सिराथू दारानगर में रही।

    आपराधिक प्रक्रिया संहिता (1898) और यू.पी. भू-राजस्व अधिनियम (1901) के अनुसार इन 8 तहसीलों में से प्रत्येक एक ही नाम के एक उपखंड के साथ समाप्त हो गया था। राजस्व और आपराधिक कार्यों हेतु जिले की प्रशासनिक इकाइयों में 08 उपखंड बने थे। तहसील चायल को छोड़कर अन्य सभी तहसीलो के मुख्यालय अपने स्वयं के तहसील मुख्यालय में कार्यालय थे। सन्‌ 1841 से सन्‌ 1862 तक जिले की सीमाएं इतनी बदल गईं थी कि परगना कड़ा के कुछ गांवों को फतेहपुर और खैरागढ़ के कुछ गांवो को मिर्जापुर जिले में मिला दिया गया था।

    सन्‌ 1834 में, इलाहाबाद को राज्य सरकार की सीट घोषित किया गया था (तब इसे ‘उत्तर-पश्चिमी प्रांत कहा जाता था), लेकिन राजधानी को 1836 में आगरा स्थानांतरित कर दिया गया था तथा फरवरी, 1858 में पुनः इलाहाबाद स्थानांतरित कर दिया गया था। सन्‌ 1877 मे जब अवध को इसके साथ मिलाया गया तब प्रांत अवध में मुख्य कार्यकारी प्राधिकरण की सीट भी लखनऊ से इलाहाबाद में स्थानांतरित कर दी गई थी। इस प्रकार इलाहाबाद लगभग एक सौ तीस वर्षों तक राज्य की विधिक राजधानी था। हालांकि 1921 में सचिवालय और विधायी विंग सहित सभी महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालयों को लखनऊ में स्थानांतरित कर दिया गया था।

    उस समय इलाहाबाद मंडल का हिस्सा बनने वाले जिलों में इटावा, कानपुर, फतेहपुर और फर्रुखाबाद शामिल थे। सामान्य प्रशासन के निष्पादन हेतु मण्डल को एक आयुक्त के अधीन रखा गया था, जिसका मुख्यालय इलाहाबाद में था। प्रतापगढ़ के गठन के बाद, 6 जिले इसका हिस्सा बन गए, लेकिन 1988 में कानपुर मण्डल के गठन के बाद कानपुर, इटावा और फर्रुखाबाद जिलों को इलाहाबाद मण्डल से अलग कर दिया गया। परिणाम स्वरूप इलाहाबाद मंडल में केवल इलाहाबाद फतेहपुर और प्रतापगढ़ जिले ही बचे थे। वर्ष 1999-2000 में इलाहाबाद के पश्चिमी भाग को काटकर कौशांबी जिला बनाया गया था। इस प्रकार, वर्तमान में, 4 जिले इलाहाबाद/प्रयागराज मण्डल का हिस्सा हैं।

    ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, मण्डलायुक्त का कार्यालय मार्च 1829 में स्थापित किया गया था और श्री रॉबर्ट बार्लो प्रथम आयुक्त बने। हालाँकि, 1927 से पहले पद पर रहने वाले मण्डलायुक्त के नाम उपलब्ध नहीं हैं।

    7.225 एकड़ भूमि में फैले, संभागीय आयुक्त का निवास, एक समय में, शहर का सबसे ऊँचा स्थान था, जहाँ से गंगा नदी दिखाई देती थी। इसका डिजाइन और निर्माण 1893 में श्री चौपमैन द्वारा किया गया था। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार निवास की मुख्य अराजी संख्या 96 है। अराजी संख्या 97 और 98 में, आयुक्त का निवास परगना उपरहार के गांव सादियाबाद में स्थित आबादी बांग्ला के रूप में पंजीकृत है, जिसकी तहसील सदर, जिला इलाहाबाद (अब प्रयागराज) है।

    मण्डलायुक्त सरकार और उसके अधीन रखे गए जिलों के बीच जोड़ने वाली कड़ी है और उन सभी जिलों पर सामान्य प्रशासनिक दृष्टि रखता है। जिले का सामान्य प्रशासन जिला अधिकारी में निहित है जिसे कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट नामित किया गया था। वह मजिस्ट्रेट और कार्यकारी दोनों शक्तियों का आदेश देता है और जिले में सभी सरकारी गतिविधियों का केंद्र है। कलेक्टर के रूप में वह राजस्व प्रशासन का मुख्य अधिकारी होता है और राजस्व के संग्रह और भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूली योग्य सभी बकाया के लिए जिम्मेदार होता है। वह भूमि अभिलेखों का रखरखाव भी करता है और अन्य काम करने के अलावा उन्हें अद्यतन रखता है। इलाहाबाद के पहले कलेक्टर श्री ए. अहमुती थे, जिनके नाम पर ‘मुठ्‌ठीगंज’ मुहल्ला बसा हुआ है।

    शासनादेश सं0 1574/1-5-2018-72-2017 (337 KB) दिनांक 18 अक्टूबर, 2018 को जनपद इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया गया।

    पौराणिक महत्व

    प्रयागराज मण्डल का प्रदेश में ऐतिहासिक एवं पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है। यह मण्डल प्रदेश की दो प्रमुख नदियों गंगा एवं यमुना के मध्य स्थित है। प्रयागराज जनपद का पौराणिक नगर प्रयाग, गंगा एवं यमुना के संगम पर स्थित है। इस प्रकार धार्मिक दृष्टिकोण से भी इसका महत्त्व उच्च कोटि का है। हिन्दू धर्म की पवित्र एवं पावन भूमि प्रयागराज, प्रदेश के पूर्वी एवं केन्द्रीय क्षेत्र में अवस्थित है। यह मण्डल काशी, अवधपुरी अयोध्या तथा तीर्थराज प्रयाग के त्रिकोण का पुरातन केन्द्र है। इस मण्डल के अन्तर्गत 4 जनपद प्रयागराज, कौशाम्बी, फतेहपुर एवं प्रतापगढ़ सम्मिलित है। मण्डल मुख्यालय के उत्तर में जनपद प्रतापगढ़, पश्चिम में जनपद कौशाम्बी तथा फतेहपुर स्थित है।

    भौगोलिक सीमाएँ

    इस मण्डल की सीमाओं में उत्तरी सीमा पर फैजाबाद मण्डल पूर्वी सीमा विन्ध्याचल मण्डल, पश्चिमी सीमा कानपुर मण्डल तथा दक्षिणी सीमा मध्य प्रदेश राज्य की रींवा जनपद की सीमा रेखायें है। 2011 की जनगणनानुसार मण्डल का भौगोलिक क्षेत्रफल 15131 वर्ग किमी. है, जो प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का 6.3 प्रतिशत है। मण्डल में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा जनपद प्रयागराज है जिसका क्षेत्रफल 5482.0 वर्ग कि.मी. है। जनपद कौशाम्बी का सबसे कम क्षेत्रफल 1780.0 वर्ग कि.मी. है। इसके बाद जनपद प्रतापगढ़ का क्षेत्रफल 3717.0 वर्ग कि.मी. है तथा जनपद फतेहपुर का भौगोलिक क्षेत्रफल 4152.0 वर्ग कि.मी. है ।

    मौसम/जलवायु एवं मिट्टी का प्रकार

    मण्डल की जलवायु शीतोष्ण है। बुन्देलखण्ड के सन्निकट होने के कारण जनपद प्रयागराज एवं कौशाम्बी में सामान्यतः गर्मी अधिक पड़ती है । मण्डल के अन्य जनपदों में लगभग स्थिति सामान्य रहती है । मौसम विज्ञान केन्द्रों से प्राप्त सूचनाओं के अनुसार वर्ष 2016-17 में मण्डल का उच्चतम तापमान 48 सेंटीग्रेड तथा न्यूनतम तापमान 3.7 सेंटीग्रेड रहा ।

    प्रयागराज मण्डल के समस्त जनपदों में वर्षा सामान्य न होने के कारण किसी जिले को सूखे का सामना करना पड़ता है तो किसी को बाढ़ का भी सामना करना पड़ता है। मौसम विज्ञान केन्द्र से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2018 में प्रयागराज मण्डल की सामान्य वर्षा 807.00 मिमी तथा वास्तविक वर्षा 661.7 मिमी. रही। वर्ष 2018 में सर्वाधिक सामान्य वर्षा जनपद प्रयागराज की 1181.0 मिमी. तथा कम सामान्य वर्षा जनपद फतेहपुर की 365.0 मिमी रही। सर्वाधिक वास्तविक वर्षा जनपद प्रतापगढ़ की 782 मिमी. तथा न्यूनतम वास्तविक वर्षा जनपद फतेहपुर की 503.5 मिमी रही। जबकि वर्ष 2017 में प्रयागराज मण्डल की सामान्य वर्षा 807.00 मिमी. तथा वास्तविक वर्षा 614.7 मिमी. थी। वर्ष 2017 में सर्वाधिक सामान्य वर्षा जनपद प्रयागराज की 1181.0 मिमी. वर्षा तथा न्यूनतम वर्षा जनपद फतेहपुर की 365 मिमी. थी जबकि सर्वाधिक वास्तविक वर्षा जनपद प्रयागराज की 684.4 मिमी. व न्यूनतम वास्तविक वर्षा जनपद फतेहपुर की 533.6 मिमी. थी।

    इस मण्डल के जनपदों में कई प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। जो फसल की दृष्टि से उपयोगी नही होती है। मण्डल के जनपद-प्रयागराज में मिट्टी मुख्यतः दोमट, बलुई, काली दोमट, पथरीली, रेत युक्त है। जनपद-फतेहपुर के उत्तरी भाग में दोमट एवं बलुई किस्म की मिट्टी है । मध्य भाग में मटियार जिसमें चिकनी मिट्टी का अंश अधिक है। जनपद प्रतापगढ़ में सई नदी के दक्षिण सम्भाग में मटियार तथा बलुई किस्म की मिट्टी है। जनपद कौशाम्बी में चायल, मंझनपुर एवं सिराथू में नदियों के किनारें बलुई मिट्टी पाई जाती है। नदी से ज्यों-ज्यों दूरी बढ़ती जाती है मटियार एवं लोम का प्रादुर्भाव होने लगता है।